No module Published on Offcanvas position
Slide 3
Science de la Vie

Transmettre les connaissances écologiques, médicinales et les modes de vie symbiotiques, pour le développement durable et la sauvegarde de la planète

Slide 1
biodiversité

Protéger la biodiversité et l’équilibre des écosystèmes, conditions indispensables à la santé humaine et à la Vie...

Slide 2
Sécurité Alimentaire

Œuvrer pour la sécurité alimentaire, combattre la malnutrition des populations vulnérables en Inde.

Slide 3
Protection de l’enfance

Agir pour la protection de l’enfance, l’éducation, pour révéler les potentiels de ceux qui construiront le monde demain.

previous arrow
next arrow

Devī-kavacam / Durgā-kavacam

Devī-kavacam / Durgā-kavacam

Shree Durga Kavacham/Devī Kavacham is a part of Durga Saptshati. Devi Kavacham sloka invokes Goddess Devi as the chant mentions different names of the Devi connected to different parts of the body. Every name has a specific quality and energy. These names and forms are closely related. Chanting Durga Kavach is popular during Navratri. Devi Kavacham is a collection of 61 shlokas from the Markandeya Purana and is part of the Durga Saptashati. Durga Devi Kavach was recited by Lord Brahma to sage Markandeya. Lord Brahma praises Goddess Parvati in nine different forms of Mother Divine. Lord Brahma solicits each one to recite Devi Kavacham and seek blessings of the Devis.

Devi Kavacham (Armour of the Goddess): This Kavach (armour) protects the reader in all parts of his body, in all places and in all difficulties. This great stotram comes as a prelude to the great Devi Mahatmya. It can also be chanted separately. It is also believed that by chanting Durga Devi Kavach, one gets health benefits too. It is recommended to to recite Devi Kavacham daily to reap the benefits. It is said the person who recites Durga Devi Kavach regularly, with sincere devotion and correct pronunciation, is protected from all ills. 

 

Durga Devi Kavach in Hindi & English Lyrics with translation and meaning. 

॥ अथ श्रीदेव्याः कवचम् ॥

ॐ नमश्चण्डिकायै

Ath Shree Devya Kavacham
Om Namashchandikaaye

Kavach starts
Salutations to Chandika Devi

 

॥ मार्कण्डेय उवाच ॥

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्‌।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥1

मार्कण्डेय जी ने कहा– पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये।

Maarkandeya Uvaach:
Om Yadguhyam Parmam Loke Sarva Rakshaakaram Nrinaam
Yann Kasya Chidaakhyaatam Tanme Broohi Pitamah (1)

Thus spoke Markandeya:
O Lord Brahmadeva (Grand father of all) , please tell me that which is very secret and has not been told by anyone to anybody else and which Protects all human beings in this world.

 

॥ ब्रह्मोवाच ॥

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2

ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करनेवाला है. हे महामुने! आप उसे श्रवण करें.

Brahmovaach:

Asti Guhyatamam Vipra Sarva Bhootopkaarkam
Divyaastu Kavacham Punyam Tachhrinushva Mahaamune (2)

Thus spoke Bramha:

O great Brahmin, there is Devi Kavach (Armour of Goddess) which is most secret and useful to all beings. Please listen to that, O Great Sage. Durga is known by these Names:

 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3

भगवती का प्रथम नाम शैलपुत्री है, दूसरी स्वरूपा का नाम ब्रह्मचारिणी है. तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाता है. चौथी रूप को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है.

Prathamam Shailputri cha Dwitiyam Brahmacharini
Tritiyam Chandraghanteti Kushmaandeti Chaturthakam (3)

The first form is SHAILAPUTRI- Daughter of the King of Himalayas; Second is BRAHMACHARINI One Who observes the state of celibacy; Third is CHANDRAGANTA- One Who bears the moon around Her neck; Fourth is KOOSHMANDA- Whose Void contains the Universe

 

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4

पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है.देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं.सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से जाना जाता है.

Panchamam Skandmaateti Shashtham Kaatyayneeti cha
Saptamam Kaalraatriti Mahagauriti Chaastamam (4)

Fifth is SKANDAMATA- Who gave birth to Karttikeya; Sixth is KATYAYANI Who incarnated to help the Devas and was born in the hermitage of Sage Kathyayana; Seventh is KALARATRI- Who is even the Destroyer of Kali; Eighth is MAHAGAURI- One Who made great penance

 

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5

नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं

Navamam Sidhhidaatri cha Navdurgaah Prakeertitaah
Uttaanyetaani Naamaani Brahmanaiv Mahaatmana (5)

Ninth is SIDDHIDATRI- One Who grants Moksha . Those who remember You with great devotion indeed have prosperity. Undoubtedly, O Goddess of the Gods, You Protect those who remember You.

 

अग्निता दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6
न तेषा जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥7
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धि प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8

जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता है.
युद्ध समय संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देता है, उन्हे शोक, दु:ख और भय की प्राप्ति नहीं होती.
जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है. देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम नि:सन्देह रक्षा करती हो.

Agninaa Dahyamaanastu Shatru Madhye Gato Rane
Vishme Durgame Chaiv Bhayaartaah Sharanam Gataah (6)
Na Teshaam Jaayate Kinchidashubham Ransankate
Naapadam Tasya Pashyaami Shokdukh Bhayam Na hi (7)
Yaistu Bhaktya Smritaa Noonam Teshaam Vridhhih Prajaayate
Ye Twaam Smaranti Deveshi Rakshase Taann Sanshayah (8)

Those who are frightened, having been surrounded by the enemies on the battlefield, or are burning in fire, or being at an impassable place, would face no calamity, and would never have grief, sorrow, fear, or evil if they surrender to Durga.

 

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमानरूढा वैष्णवी गरुडासना॥9

चामुण्डादेवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं. वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं. ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है. वैष्णवी देवी गरुड़ को अपना आसन बनाती हैं.

Pretsansthaa tu Chamunda Vaarahi Mahishaasanaa
Aindri Gajsamaa Roodhaa Vaishnavi Garudaasana (9)

The Goddess Chamunda sits on a corpse, Varahi rides on a buffalo, Aindri is mounted on an elephant and Vaishnavi on a condor.

 

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10

माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं. कौमारी का वाहन मयूर है. भगवान् विष्णु (हरि) की प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमल के आसन पर विराजमान हैं,और हाथों में कमल धारण किये हुई हैं.

Maheshwari Vrishaa Roodhaa Kaumari Shikhi Vaahanaa
Lakshmi Padmaasana Devi Padmahastaa Haripriya (10)

Maheswari is riding on a bull, the vehicle of Kaumari is the peacock, Lakshmi, the Beloved of Shri Vishnu, is seated in a lotus and is also holding a lotus in Her Hand.

 

श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11

वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है. ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं.

Shwetroop Dharaa devi Ishwari Vrishvaahanaa
Braahmi Hans Samaaroodhaa Sarvaabharan Bhooshita (11)

The Goddess Ishwari, of white complexion, is riding on a bull and Brahmi, Who is bedecked with all ornaments is seated on a swan.

 

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12

इस प्रकार ये सभी माताएं सब प्रकार की योग शक्तियों से सम्पन्न हैं. इनके अलावा और भी बहुत सी देवियां हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं.

Ityetaa Maatarah Sarvaah Sarvayog Samanvitaah
Naanaa Bharan Shobhaadhhyaa Naanaa Ratno Pashobhitaa (12)

All the mothers are endowed with Yoga and are adorned with different ornaments and jewels.

 

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शंख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्‌॥13
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शांर्गमायुधमुत्तमम्‌॥14
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वस॥15

ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती हैं। ये शङ्ख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त औ त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथ में धारण करती हैं। दैत्यों के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना यही उनके शस्त्र-धारण का उद्देश्य है।

Drishyante Rath Maaroodhaa Devyah Krodh Samaa Kulaah
Shankham Chakram Gadaam Shaktim Halam cha Muslaayudham (13)
Khetakam Tomram chaiv Parshum Paashamev cha
Kuntaayudham Trishulam cha Shaargam Maayudhmuttamam (14)
Daityaanaam Dehnaashaay Bhaktaanaam Bhayaay cha
Dhaarayantya Yudha Neetham Devaanaam cha Hitaay Vai (15)

All the Goddesses are seen mounted in chariots and very Angry. They are wielding conch, discus, mace, plough, club, javelin, axe, noose, barbed dart, trident, spears, strong bow and arrows made of horns. These Goddesses are wielding Their weapons for Destroying the bodies of demons, for the Protection of Their devotees and for the benefit of the Gods.

 

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महावले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16

महान रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान् बल और महान् उत्साह वाली देवी तुम महान् भय का नाश करने वाली हो,तुम्हें नमस्कार है.

Namaste Astu Mahaaraudre Mahaaghor Paraakrame
Mahaabale Mahotsaahe Mahaabhay Vinaashini (16)
Salutations to You, O Goddess, of very dreadful appearance, of frightening valour, of tremendous strength and energy, the Destroyer of the worst fears.

 

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिन।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥17
दक्षिणेऽवतु वाराहीनैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18

तुम्हारी तरफ देखना भी कठिन है. शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बे ,मेरी रक्षा करो. पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति)मेरी रक्षा करे.अग्निकोण में अग्निशक्ति,दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करें. पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करे.

Traahimaam Devi Dushprekshye Shatrunaam Bhayvardhini
Praachyaam Rakshatu Maamaindri Aagneyyaam agni Devta (17)
Dakshinevatu Vaaraaahi Nairityaam Khangdhaarini
Prateechyaam Vaaruni Rakshed Vaayavyaam Mrigvaahini (18)

O Devi, it is difficult to have even a glance at You. You increase the fears of Your enemies, please come to my rescue. May Goddess Aindri (Power of Indra) Protect me from the east. Agni Devata (Goddess of Fire) from the south-east, Varahi (Shakti of Vishnu in the form of the boar) from the south, Khadgadharini ( holder of the sword) from the south-west, Varuni (The Shakti of Varuna, the rain God) from the west and Mrgavahini, (Whose vehicle is the deer) may Protect me from the north-west.

 

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद्धस्ताद् वैष्णवी तथा ॥19

उत्तर दिशा में कौमारी और ईशानकोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करे.ब्रह्माणि!तुम ऊपर( गगन )की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे (जमीन) की ओर से मेरी रक्षा करे.

Udichaam Paatu Kaumaari Aishaanyaam Shooldhaarini
Oordhwam Brahmaani Me Rakshedhastaad Vaishnavi Tathaa (19)

The Goddess Kaumari (The Shakti of Kumar, that is Karttikeya) Protect me from the north and Goddess Shooladharini from the north-east, Brahmani, (The Shakti of Brahma) from above and Vaishnavi (Shakti of Vishnu) from below, Protect me.

 

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥20
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21

शव को अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें. जया सामने से और विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करे.
वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता हमारी रक्षा करे. उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे. उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करे.

Evam Dashdisho Rakshechaamunda Shavvaahaa
Jaya me Chagratah Paatu Vijaya Paatu Prishthatah (20)
Ajitaa Vaamparshwe Tu Dakshine Chaaparaajita
Shikha Mudyotini Rakshedumaa Moordhni Vyavasthitaa (21)

Thus Goddess Chamunda, Who sits on a corps, Protects me from all the ten directions. May Goddess Jaya Protect me from the front and Vijaya from the rear; Ajita from the left and Aparajita from the right. Goddess Dyotini may Protect the top­knot and Uma may sit on my head and Protect it.

 

मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23

ललाट में मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे.भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे.
दोनों नेत्रों के मध्य भाग में शङ्खिनी और कानों में द्वारवासिनी रक्षा करे। कालिकादेवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करे

Maalaadhari Lalaate chabhruvou rakhshed Yashasvini
Trinetra cha Bhruvormadhye Yam Ghantaa cha Naasike (22)
Shankhini Chakshushor madhye Shrotrayor Dwaarwaasini
Kapolau Kaalika Rakshet Karn Mooletu Shaankari (23)

May I be Protected by Maladhari on the forehead, Yashswini on the eye-brows, Trinetra between the eye-brows, Yamaghanta on the nose, Shankini on both the eyes, Dwaravasini on the ears, may Kalika Protect my cheeks and Shankari the roots of the ears.

 

नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24
दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27

नासिका की देवी सुगन्धा और ऊपर के ओंठ की चर्चिका देवी रक्षा करे. नीचे के ओंठ की देवी अमृतकला तथा जिह्वा की रक्षा सरस्वती करे.
कौमारी देवी मेरे दाँतों की और चण्डिका देवी कण्ठ की रक्षा करें.चित्रघण्टा देवी गले की घाँटी और देवी महामाया तालु में रहकर हमारी रक्षा करे.
कामाक्षी देवी ठोढी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे. भद्रकाली ग्रीवा की और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) की रक्षा करे.
कण्ठ के बाहरी भाग की नीलग्रीवा और कण्ठ की नली की रक्षा नलकूबरी करे.दोनों कंधों की रक्षा खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करे.

Naasikaayaam Sugandhaa Cha Uttaroshthe cha Charchika
Adhare Chaamrit Kalaa Jihvayaam cha Saraswati( 24)
Dantaan Rakshatu Kaumaari Kanthdeshe Tu Chandika
Ghantikaam Chitraghantaa cha Mahaamaaya cha Taaluke (25)
Kaamaakshi chibukam Rakshed Vaacham me Sarvamangalaa
Greevaayaam Bhadrakaali cha Prishthvanshe Dhanurdhari (26)
Neelgreeva Bahih Kanthe Nalikaam Nalkoobari
Skandhyoh Khangini Rakshed Baahu Me Vajradhaarini (27)

May I be Protected by Sugandha-nose, Charchika-lip, Amrtakala-lower lip, Saraswati-tongue, Kaumari-teeth, Chandika­throat, Chitra-ghanta-soundbox, Mahamaya-crown of the head, Kamakshi-chin, Sarvamangala-speech, Bhadrakali-neck, Dhanurdhari-back. May Neelagreeva Protect the outer part of my throat and Nalakoobari-windpipe, may Khadgini Protect my shoulders and Vajra-dharini Protect my arms.

 

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31

दोनों हाथों की दण्डिनी और उँगलियों की रक्षा अम्बिका करे. शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे. कुलेश्वरी कुक्षि ( पेट)में रहकर रक्षा करे.
महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मन की रक्षा करे. ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी उदर की रक्षा करे.
नाभि की देवी कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे. पूतना और कामिका लिंग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे. भगवती कटि भाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे. सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे.

Hastyo Dandini Rakshedambika Changuleeshu cha
Na Khaachhooleshwari Rakshet Kukshou Rakshetkuleshwari (28)
Stanau Rakshen Mahaadevi Manah Shok Vinaashini
Hridaye Lalita Devi Udare Shooldhaarini (29)
Nabhau cha Kaamini Rakshed Guhyam Guhyeshwari tathaa
Pootna Kaamika Medhhram Gude Mahishwaahini (30)
Katyaam Bhagwati rakshejjaanuni Vindhyavaasiniornar
Janghe Mahaabalaa Rakshet Sarvakaam Pradaayini (31)

May Devi Dandini Protect both my hands, Ambika-fingers, Shooleshwari my nails and may Kuleshwari Protect my belly. May I be Protected, by Mahadevi-breast, Shuladharini-abdomen, Lalita Devi-heart, Kamini-navel, Guhyeshwari-hidden parts, Pootana Kamika-reproductive organs, Mahishavasini-excretory organ.
May Goddess Bhagavati Protect my waist, Vindhyavasini-knees and the wish-fulfilling Mahabala may Protect my hips.

 

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32

नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठभाग की रक्षा करे.श्रीदेवी पैरों की उँगलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करे.

Gulfyornaarsinghi cha Paadprishthhe tu Taijasee
Paadaanguleeshu shree Rakshet Paadaadhastal Vaasini (32)

May Narashini Protect my ankles. May Taijasi Protect my feet, may Shri Protect my toes. May Talavasini Protect the soles of my feet.

 

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33

अपनी दाढों के कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करे. रोमावलियों के छिद्रों की देवी कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करे.

Nakhaan Danshtraakaraali cha Keshaansh chaivordhva Keshini
Romkoopeshu Kauberi Tvacham Vaageeshwari Tathaa (33)

May Danshtrakarali Protect my nails, Urdhvakeshini-hair, Kauberi-pores, Vagishwari-skin.

 

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35

पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी और मेद की रक्षा करे. आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करे. मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करे. नख के तेज की देवी ज्वालामुखी रक्षा करे. जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करे.

Rakt majaa Vasaa maansaanyasthi Medaamsi Paarvati
Antraani Kaalraatrish cha Pittam cha Mukteshwari (34)
Padmaavati Padmakoshe Kafe Choodamnistathaa
Jwaalaamukhi Nakhjwaalaam Bhedyaa Sarvasandhishu (35)

May Goddess Parvati Protect blood, marrow of the bones, fat and bone; Goddess Kalaratri-intestines. Mukuteshwari-bile and liver.
May Padmavati Protect the Chakras, Choodamani-phlegm (or lungs), Jwalamukhi lustre of the nails and Abhedya-all the joints.

 

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36

हे ब्रह्माणी!आप मेरे वीर्य की रक्षा करें. छत्रेश्वरी देवी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार,मन और बुद्धि की रक्षा करे.

Shukram Brahmaani me Rakshechhaayaam Chhatreshvareem Tathaa
Ahankaaram Manobudhhim Rakshenme Dharmshaarini (36)

Brahmani-semen, Chhatreshwari the shadow of my body, Dharmadharini-ego, superego and intellect (buddhi).

 

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37

हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करे. कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करे.

Praanaapaanau tathaa Vyaanmudaanam cha Samaankam
Vajrahastaa cha me Rakshetpraanam Kalyaanshobhana (37)

Vajrahasta-pran, apan, vyan, udan, saman (five vital breaths), Kalyanashobhana-pranas (life force).

 

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38

रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय मां योगिनी देवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण,रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करे.

Rase Roope cha Gandhe cha Shabde Sparshe cha Yogini
Satwam Rajastamashchaiv Rakshe Narayani Sadaa (38)

May Yogini Protect the sense organs, that is, the faculties of tasting, seeing, smelling, hearing and touching. May Narayni

 

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39

वाराही आयु की रक्षा करे. वैष्णवी धर्म की रक्षा करे तथा चक्रिणी देवी मेरे यश,कीर्ति,लक्ष्मी,धन तथा विद्या की रक्षा करे.

Ayu Rakshatu Vaaraahee Dharmam Rakshatu Vaishnavi
Yashah Keertim cha Lakshmim cha Dhanam Vidyaam cha Chakrini (39)

Varahi-the life, Vaishnavi-dharma, Lakshmi-success and fame, Chakrini-wealth and knowledge.

 

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40

इन्द्राणि! आप मेरे गोत्र की रक्षा करें. चण्डिके! तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो. महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करे.

Gotramindraani me Rakshetpashoonme Raksha Chandike
Putraan Rakshen Mahalakshmeer Bhaaryaam Rakshatu Bhairavi (40)

Indrani-relatives, Chandika-cattle, Mahalakshmi-children and Bhairavi-spouse

 

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41

मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करे. राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी सम्पूर्ण भयों से मेरी रक्षा करे.

Panthaanam Supathaa Rakshenmaargam Kshemkari Tathaa
Raajdwaare Mahaalakshmir Vijaya Sarvatah Sthitaa (41)

Supatha may Protect my journey and Kshemakari my way. Mahalakshmi may Protect me in the king’s court and Vijaya everywhere.

 

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42

हे देवी! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, रक्षा से रहित है,वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो;क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो.

Rakshaaheenam tu Yatasthaanam Varjitam Kavchen Tu
Tatsarvam Rakshmedevi Jayanti PaapNaashini (42)

O Goddess Jayanti, any place that has not been mentioned in the Kavach and has thus remained unprotected, may be Protected by You.

 

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45

यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाए. कवच का पाठ करके ही यात्रा करे.कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है,वहाँ-वहाँ उसे धन-लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है.वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है. वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलना रहित महान् ऐश्वर्य का भागी होता है.

Padmekam Na Gachhetu Yadee chhechhubh Maatmanah
Kavchenaavrito Nityam Yatra Yatraiv Gachhati (43)
Tatra Tatraarth Laabhashcha Vijayah Saarva Kaamikah
Yam Yam Chintyate Kamam Tam Tam Praapnoti Nishchitam
Parmaishwarya Matulam Prapsyate Bhootale Pumaan (44)
Nirbhayo Jaayate Martyah Sangraameshwa Parajitah
Trailokye Tu Bhavetpujyah Kavchenaavritah Pumaan (45)

One should invariably cover oneself with this Kavacha (by reading) wherever one goes and should not walk even a step without it if one desire auspiciousness. Then one is successful everywhere and all one’s desires are fulfilled and that person enjoys great prosperity on the earth.
The person who covers himself with Kavacha becomes fearless, is never defeated in the battle and becomes worthy of being worshipped in the three worlds.

 

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48

कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है.युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है.
देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है. जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है,उसे दैवी कला प्राप्त होती है. तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु रहित हो, सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है.

Idam tu Devyaah Kavcham Devaanaam api Durlabham
Yah Pathet Prahto Nityam Trisandhyam Shradhyaan vitah (46)
Devi Kalaa Bhavetasya Trailokye shwaparaajitah
Jeeved Varshshatam Saagram pamrityu vivarjitah (47)
Nashyanti Vyadhyan Sarve Lootavisfot Kaadayah
Sthaavaram Jangam Chaiv Kritrimam Chaapi Yadvisham (48)

One who reads with faith every day thrice (morning, afternoon and evening), the ‘Kavacha’ of the Devi, which is inaccessible even to the Gods, receives the Divine arts, is undefeated in the three worlds, lives for a hundred years and is free from accidental death.
All disease, like boils, scars, etc. are finished. Moveable (scorpions and snakes) and immoveable (other) poisons cannot affect him.

 

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53

मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं. कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष-ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं,उनका कोई असर नहीं होता.इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के मन्त्र-यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं. यही नहीं, पृथ्वी पर विचरने वाले ग्राम देवता, आकाशचारी देव विशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म से साथ प्रकट होने वाले देवता, कुल देवता, माला, डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरण करनेवाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किए रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं. कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान वृद्धि प्राप्ति होती है. यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है.

Abhichaarani Sarvaani Mantra Yantraani Bhootale
Bhoocharaah Khecharaash Chaiv Jaljaashchop Deshikaah (49)
Sehjaa Kuljaa Maalaa Daakini Shaakini Tathaa
Antariksh charaa ghoraa Daakinyashch Mahaabalaah (50)
Grah Bhoot Pishaachaashch Yaksh Gandharv Raakshasaa
Brahm Raakshas Vetaalaah Kooshmaandah Bhairvaadayah (51)
Nashyanti Darshanttasya Kavche Hridi Sansthite
Manonnatir Bhavedra Gyaste Jo Vridhhi Karam Param (52)
Yashasaa Vardhate So api Keerti Mandit Bhootale
Japet Saptashatim Chandeem Kritva tu Kavacham Pura (53)

All those, who cast magical spells by mantras or yantras, on others for evil purposes, all bhoots, goblins, malevolent beings moving on the earth and in the sky, all those who mesmerise others, all female goblins, all yakshas and gandharvas are destroyed just by the sight of the person having Kavach in his heart.
That person receives more and more respect and prowess. On the earth he rises in prosperity and fame by reading the Kavacha and Saptashati.

 

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56

कवच का पाठ करने वाला पुरुष को अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयस के साथ-साथ वृद्धि प्राप्त होता है. जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है.
देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवतोओं के लिए भी दुर्लभ है। वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याण शिव के साथ आनन्द का भागी होता है।

Yaavad Bhoomandalam Dhatte Sashail Vankaananam
Taavat Tishthati Medinyaam Santatih Putra Pautrikee (54)
Dehaante Paramam Sthaanam Yat surairapi Durlabham
Praapnoti Purusho Nityam Mahaamaya Prasaadatah (55)
Labhate Parmam Roopam Shiven Sah Modate Om (56)

His progeny would live as long as the earth in rich with mountains and forests. By the Grace of Mahamaya, he would attain the highest place that is inaccessible even to the Gods and is eternally blissful in the company of Lord Shiva.

॥ इति देव्याः कवचं संपूर्णम्‌ ॥

Iti Shree Devayaah Kavcham Sampoornam

Thus Shree Devayaah Kavcham ends.

 

 

 

 

 

॥अथ देव्यः कवचम् ॥

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्चण्डिकायै

॥ मार्कण्डेय उवाच ॥

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥

॥ ब्रह्मोवाच ॥

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी॥२८॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥३३॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥४९॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।